On April 26, 2024
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निजी स्कूलों की मनमानी रोकने में शासन प्रशासन नाकाम, जमकर हो रहा अभिभावकों का शोषण
उत्तराखण्ड सत्य रूद्रपुर
नया शिक्षण सत्र शुरू होते ही कई निजी स्कूलों में लूट खसोट का खेल फिर शुरू हो गया है। निजी स्कूल संचालकों की मनमानी के चलते अभिभावकों पर खुलेआम आर्थिक हमला हो रहा है लेकिन जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग इसकी सुध लेने को तैयार नहीं है। कमीशनखोरी का खेल इस कदर बढ़ गया है कि कई स्कूलों की कापी और किताब एक ही दुकान से मिल पा रही है। वहीं कई स्कूल फीस बढ़ाने की भी तैयारी कर रहे हैं। हर साल शिक्षा सत्र शुरू होते ही निजी स्कूल और स्टेशनरी संचालक सक्रिय हो जाते हैं। किताब -कॉपी से लेकर ड्रेस, बैग सभी में कमीशनखोरी का बाजार जोरों पर चलने लगता है।प्राइवेट स्कूल मनमानी फीस तय करके अभिभावकों की जेब काट रहे हैं। नए शैक्षणिक सत्र में जिस तरह से प्राइवेट स्कूल एडमिशन के नाम पर मनमानी कर रहे हैं। साथ ही बच्चों को मनमाफिक प्रकाशकों की मंहगी किताबों को खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं उससे यह साफ है कि उत्तराखण्ड में प्राइवेट स्कूलों में सरकार और प्रशासन का कोई भय नहीं है जिसके चलते हजारां अभिभावक लुटने को मजबूर हो रहे हैं। हर साल प्राइवेट स्कूलों में इस तरह की लूट निर्बाध तरीके से होती रही है। बावजूद इसके सरकार और सरकारी तंत्र इस लूट को रोकने में नाकाम ही रहते हैं। प्राइवेट स्कूल छात्रें को मनमाफिक प्रकाशकां की मंहगी किताबों को खरीदने का दबाव बनाकर सरकार की नीति को ही पलीता लगाने में लगे हुए हैं लेकिन उन पर कार्रवाई होने के बजाय हमेशा जांच का बहाना बना दिया जाता है। सरकार प्रदेश के सभी स्कूलों में सीबीएससी पाठ्यक्रम लागू कर चुकी है। इसके लिए एनसीआरटी की किताबों को ही सभी स्कूलों में लागू किया गया है। एनसीआरटी की पुस्तकें बहुत सस्ती हैं जबकि अन्य प्रकाशकों की किताबें बेहद महंगी हैं जिस कारण इनको खरीदने के लिए अभिभावकों को दोहरा आर्थिक बोझ सहन करना पड़ रहा है। एक तो महंगी किताबें होने से बजट बिगड़ रहा है। दूसरा हर प्राइवेट स्कूल के अलग-अलग मानक और प्रकाशक तय किए हुए हैं। यह एक निश्चित दुकानों पर ही मिलती है। प्राइवेट स्कूलों द्वारा इन किताबों को ही खरीदने का दबाव बनाया जाता है। इसके अलावा बगैर मानकों के ही बढ़ी हुई फीस लेना साथ ही छात्र पास होने के बाद आगे की क्लास में जाता है तो उससे रि-एडमिशन चार्ज लेना, स्कूल इमारत फंड के नाम पर इन स्कूलों का सबसे बड़ा लूट का माध्यम बन चुका है। कई स्कूलों में तो बच्चों को रिपोर्ट कार्ड के साथ सिलेबस की पर्ची भी पकड़ा दी जा रही है। पहली से लेकर पाचवीं तक के बच्चों का सिलेबस करीब पांच से छह हजार रुपये में बैठ रहा है। ड्रेस, बैग और फीस अभी अलग है। हालात यह हैं कि एक बच्चे को कांवेंट स्कूल में पढ़ाना सामान्य परिवार के अभिभावक के लिए कठिन कार्य हो गया है। निजी स्कूलों में जहां उन्हे एडमिशन के लिए मोटी रकम चुकता करनी होती है वहीं बच्चे को सिलेबस मुहैया कराने में अभिभावकों की कमर टूट रही है। निजी स्कूलों के साथ दुकानदारों की साठगांठ के चलते तय पाठ्यक्रम के बाद भी कई अन्य चीजें को मजबूरन खरीदना पड़ रहा है। सिलेवस के नाम पर अभिभावकों के हाथों में किताबें-कॉपी नहीं बल्कि पूरी पेटी आ रही है। कई अभिभावकों ने दबी जुबान से बताया कि स्कूलों की ओर से प्रवेश प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद ही फौरन सिलेवस की पर्ची थमा दी जाती है, स्कूल की ओर से कहा जाता है कि संबंधित दुकान से सिलेवस खरीदने में कोई परेशानी नहीं होगी। दुकानों पर पहले से ही पेटी में हर कक्षा का सिलेबस तैयार होता है, दुकानदार मनमर्जी से अतिरिक्त़ वस्तुओं को भी शामिल कर दाम वसूल रहे हैं। अभिभावक बताते है। कि री-एडमिशन से लेकर प्रति महीना स्कूल फीस में तो स्कूल प्रबंधक मनमर्जी करते ही हैं। साथ ही साल में कई बार होने वाले फंक्शन के लिए भी पैसे वसूले जाते हैं। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल प्रबंधकों की मनमानी से लोग परेशान हो चुके हैं, शिकायत करते हैं तो बच्चों को परेशान किया जाता है, जिस कारण मजबूर होकर उन्हें चुप रहना पड़ता है इस पर प्रशासन भी कुछ नहीं करता ।
महंगी फीस फिर भी कोचिंग का सहारा
निजी स्कूलों में महंगी फीस के बावजूद अभिभावक अपने बच्चों को कोचिंग में भेजने के लिए मजबूर है। दरअसल कई निजी स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। ये स्कूल मोटी फीस तो वसूलते हैं लेकिन सलेवस को समय पर पूरा नहीं कर पाते। स्कूल में बच्चों को इस तरह से नहीं पढ़ाया जाता कि वह विषय को ठीक से समझ सकें। जिसके चलते मजबूर होकर बच्चों को ट्यूशन भेजना पड़ता है। जिसके चलते शहर में कोचिंग सेंटरों की बाढ़ आ गयी है। कोचिंग सेंटरों में बच्चों से एक विषय के दो से तीन हजार रूपये वसूले जा रहे हैं। जिसके चलते आम आदमी के लिए बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना मुश्किल होता जा रहा है। आलम यह है कि कई निजी स्कूलों के शिक्षक उन्हें खुद कोचिंग जाने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ साथ उन पर खुद से ट्यूशन पढ़ने के लिए दबाव भी बनाते हैं। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल में बच्चों की फीस पांच से आठ हजार रूपये तक भरनी होती है इसके अलावा साल भर में होने वाले अन्य खर्चे अलग हैं। पढ़ाई में प्रयोग होने वाली सामग्री में भी स्कूल संचालक लूट खसोट मचाते हैं इसके बावजूद उन्हें कोचिंग का भी सहारा लेना पड़ रहा है। अभिभावकों का कहना है कि अगर स्कूलों में विषय को सही ढंग से पढ़ाया जाये तो कोचिंग की जरूरत नहीं पडे़गी। लेकिन इस पर कोई भी निजी स्कूल संचालक ध्यान नहीं दे रहा। अभिभावकों का कहना है कि निजी स्कूल वर्तमान में सिर्फ कमाई का अड्डा बन चुके हैं।