On October 17, 2020
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जल्द भरने वाले नहीं हैं कोरोना के दिये गये जख्म
उत्तराखण्ड सत्य,रूद्रपुर
कोरोना संकट के बीच अनलाॅक में धीरे धीरे सब कुछ खुलने से अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटती नजर आ रही है। उम्मीद की जा रही है कि कोरोना की रफ्तार कम होती रही तो त्यौहारों तक अर्थव्यवस्था का पहिया एक बार फिर तेजी से घूमने लगेगा।
कोरोना के चलते मार्च में घोषित हुए लाॅकडाउन ने अर्थव्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था। मंदी के सबसे बुरे दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए केन्द्र और प्रदेश सरकार ने पूरी ताकत झोंक रखी है। आर्थिक पैकेजों के साथ साथ कई सुधारात्मक कदम सरकार की ओर से उठाये गये हैं। जिसका बाजार पर सकारात्मक परिणाम नजर आने लगा है। तालाबंदी खुलने से सड़कों पर यातायात बढ़ा है और बाजार में मांग की स्थिति में सुधार आया है। फिर भी सयाने सावधान कर रहे हैं कि 5 महीनों के झटकों की भरपाई इतनी जल्दी नहीं होगी। बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के अपने पुराने वैभवकाल में लौटने में अभी बहुत वक्त लगेगा। जानकारों की राय है कि कोरोना काल में ध्वस्त हो चुकी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए सरकार को प्रोत्साहन पैकेज तीन साल तक तो जारी रखने ही होंगे। इसमें संदेह नहीं कि कोरोना और उसके फलस्वरुप लागू तालाबंदी का भारत समेत पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है। लेकिन इसे अच्छा संकेत माना जा रहा है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के बाद भारत में आर्थिक गतिविधियाँ एक-एक कर पुनः खुलने के सकारात्मक परिणाम आए हैं। लेकिन कोरोना के दिए जख्म जल्दी भरने वाले नहीं। अनुमान है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और मनरेगा में मजदरी बढ़ने से भी प्रामीण मांग में तेजी आएगी। शहरी अर्थव्यवस्था में मांग और सुधार अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। पिछले दिनों सरकार ने आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए 200 लाख करोड़ रुपए का विशाल आत्मनिर्भर पैकेज लागू किया था। इस पैकेज का प्रमुख बिंदु कठिन परिस्थितियों से जूझने वालों को ऋण उपलब्ध करना है जिससे ये कोविड संकट को पार कर सामान्य परिस्थिति बाहाल होने तक अपना अस्तित्व जीवित रख सकें। लेकिन सामान्य परिस्थिति आएगी, यह संदेहास्पद है। कोविड का वायरस गिरगिट की तरह अपना रंग-रूप बदलता जा रहा है और यूरोप के कई देशों में इसकी दूसरी लहर आई है। ऐसे में हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि यह एक अल्पकालिक संकट है जिसे हम ऋण देकर पार कर जाएंगे। बल्कि देश की आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए मौलिक विषयों पर ध्यान देना होगा।उद्योग जगत अभी भी मंदी के दौर से उबर नहीं पा रहा है। यह खतरे की घंटी है क्योंकि यदि हमारी मैन्युफैक्चरिंग में सुधार नहीं हुआ है तो हम जल्दी नहीं संभल पायेंगे।