On April 21, 2024
City:
उत्तराखण्ड सत्य,रूद्रपुर
उत्तराखंड में लोकसभा की सभी पांचों सीटों के लिए मतदान हो गया है, लेकिन अंतिम समय तक चुनाव जैसा अहसास नहीं हुआ। पिछले चुनावों में जिस तरह का माहौल चुनाव प्रचार के दौरान दिखता था और जैसी गर्माहट घुलती थी, वह इस बार नदारद रही। मतदाताओं की चुप्पी ने राजनैतिक दलों की बेचौनी को बढ़ा दिया है। इस बार आम चुनाव का स्वरूप कुछ अलग ही नजर आया। चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों के साथ स्टार प्रचारक सभाएं कर गए। वायदों का पिटारा भी खुला लेकिन गली मोहल्लों में पहले जैसा चुनावी शोर नजर नहीं आया। कई बस्तियों में तो प्रत्याशी और उनके समर्थक झांकने तक नजर नहीं आये। न ही शराब का दौर चला। अंतिम स मय तक मतदाताओं ने भी जुबां पर खामोशी ओढ़े रखी। मतदाता ने किसी को अपने मन की थाह नहीं लेने दी, जिसने राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के दिलों की धड़कनें बढ़ा दी हैं। पिछले चुनावों के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो यहां परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों कांग्रेस व भाजपा के मध्य ही भिडं़त होती आई है। इस बार की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही सामने आयी है, लेकिन पिछली बार तक जिस तरह से चुनावी पारा चढ़ता रहा है, वह गायब था। माहौल गर्माने को बहुत अधिक प्रयास भी होते नजर नहीं आए। भाग्यविधाता मतदाताओं की चौखट पर प्रत्याशियों व समर्थकों ने वादे-दावे खूब किए। बावजूद इसके न तो पंपलेट बांटने की कहीं होड़ दिखी और न वाल राइटिंग, बैनर-पोस्टर की। बुजुर्गों को चौखट पर आने वाले प्रत्याशियों को आशीर्वाद देने का इंतजार रहता था, लेकिन इस मर्तबा माहभर का समय आंखों ही आंखों में बीत गया। सुदूर पहाड़ से लेकर मैदान तक गांवों, शहरों का परिदृश्य इससे जुदा नहीं रहा। सियासी हलकों में यह प्रश्न तैर रहा है कि आिखर, हर बार की तरह इस बार चुनाव क्यों नहीं उठा। क्यों चुनावी पारे ने उछाल नहीं भरी। यानी, स्वाभाविक रूप से हर किसी की जुबां पर यह विषय चर्चा के केंद्र में है। गर्मी का पारा धीरे धीरे बढ़ता रहा लेकिन चुनावी तापमान ठंडा रहा। इसके पीछे राजनीतिक कारण भी समाहित हैं। असल में भाजपा ने अपने चुनाव अभियान का आगाज काफी पहले से ही प्रारंभ कर एक प्रकार से मनोवैज्ञानिक बढ़त ले ली थी। उसने इस बार चार सौ पार का नारा दिया। इसका जनता पर क्या असर पड़ा, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा, लेकिन कांग्रेस पर इसका असर अवश्य देखा गया। कांग्रेस में चुनाव लडने को लेकर चली ना-नुकुर को इससे जोड़कर देखा जा रहा है और इसने पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्साह को कम करने का काम किया। यद्यपि, बाद में प्रत्याशियों के मैदान में उतरने पर कांग्रेस कार्यकर्ता भी जुटे, लेकिन राज्य के वरिष्ठ नेता अपने दड़बों से बाहर नहीं निकले। चुनाव प्रचार अभियान में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नîóा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, जनरल वीके सिंह (सेनि) समेत अन्य स्टार प्रचारकों की नियमित अंतराल में सभाएं आयोजित कीं। कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में शामिल बड़े नेताओं में केवल पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और सचिन पायलट की सभा ही राज्य में हुई। इस सबके बावजूद चुनावी पारा उस हिसाब से नहीं चढ़ा, जैसा पूर्व के चुनावों में चढ़ता था। इसे लेकर सबके अपने-अपने दावे हैं। कुछ लोग इसे बदलाव के तौर पर देख रहे हैं। उनका कहना है कि चुनाव प्रचार अभियान के तौर तरीकों को लेकर अब सोच बदल रही है। मतदाता परिपक्व हो चुका है। वह चुनावी शोरगुल से प्रभावित नहीं होता, बल्कि दलों, प्रत्याशियों को अपनी कसौटी पर परखता है। दूसरी तरफ कुछ लोग यह चिंता जताते हैं कि इस बार जैसा परिदृश्य दिखा है, उसका मतदान पर असर न पड़े।