On April 21, 2024
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मतदान प्रतिशत घटने से राजनैतिक दलों और प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ी
उत्तराखण्ड सत्य रूद्रपुर
उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटों के लिए मतदान शांतिपूर्वक संपन्न हो गया है। पूरे राज्य में किसी भी क्षेत्र से चुनाव के दौरान किसी अप्रिय घटना की सूचना पुलिस को नहीं मिली। हालाकि कुछ स्थानों पर चुनाव के बहिष्कार की खबरें जरूर आई । इस बार चुनाव की सुरक्षा में करीब 40 हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी और अर्द्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था। आम चुनाव में इस बार मतदान का प्रतिशत पहले से गिर गया है। प्रदेश भर में करीब 56 प्रतिशत मतदान हुआ है जिससे राजनैतिक दलों और प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ गयी है। जागरूकता की तमाम कोशिशों के बावजूद उत्तराखंड का मतदाता बड़ी संख्या में अपने घरों से बाहर नहीं निकला। चुनाव आयोग ने उत्तराखंड में इस बार 75 प्रतिशत मतदान का लक्ष्य रखा था। 2019 में 61-88 प्रतिशत मतदान हुआ था, लेकिन इस बार पांचैं सीटों पर मतदान 60 प्रतिशत का आंकड़ा भी पूरा नहीं हो पाया। सुबह सात बजे जब मतदान शुरू हुआ तो राजनीतिक दल, उम्मीदवार और चुनाव आयोग की टीम मतदेय स्थलों पर मतदाताओं की जुटती भीड़ को देख उत्साहित थे, लेकिन यह उत्साह 11 बजे के बाद काफूर हो गया। तीन के बाद प्रदेश के कई हिस्सों में मतदान केन्द्रों पर सन्नाटा पसर गया। कई स्थानों पर मतदाताओं ने वोट डालने को लेकर कोई रूचि नहीं दिखाई। प्रदेश भर में 12 बूथों पर हजारों लोगों ने मतदान का खुला बहिष्कार भी किया। राजनैतिक दलों के लोग और प्रशासन इन स्थानों पर लोगों को मनाने की तमाम कोशिशें करता रहा लेकिन कामयाबी नहीं मिली। दरअसल इन स्थानों पर लोग सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी जरूरतों को लेकर सरकार से नाराज थे, जिसके चलते उन्होंने वोट का बहिष्कार किया। वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए इस बार चुनाव आयोग ने पूरी ताकत झोंक दी थी। चुनाव आयोग के निर्देश पर जिला प्रशासन की ओर से जागरूकता के लिए कई तरह के अभियान चलाये गये। स्वीप गतिविधियों के माध्यम से मतदान प्रतिशत बढ़ाने की हरसंभव कोशिश की गयी लेकिन मतदाताओं के आगे सभी प्रयास बेकार साबित हुए। ग्रामीण क्षेत्रें के लोगों ने इस बार भी मतदान को लेकर शहरी लोगों की अपेक्षा अधिक जागरूकता दिखाई। मतदान प्रतिशत कम रहने की सबसे बड़ी वजह शहरी वोटर हैं। चुनावी प्रक्रिया और राजनीतिक दलों-उम्मीदवारों के प्रति उत्साह की कमी के कारण शहरी मतदाता मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लेते। कई बार उन्हें लगता है कि उनका वोट मायने नहीं रखेगा या उनके एक वोट से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कामगारों का एक बड़ा तबका भी वोट नहीं डाल पाता। सामान्य जीवन की चुनौतियों से जूझने की कोशिश में कामगार लोकतंत्र के महापर्व में शामिल नहीं हो पाते। शादियों के सीजन को भी मतदान प्रतिशत कम होने का कारण माना जा रहा है। शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों में इस समय शादियां हैं। ऐसे में उत्तराखंड में मतदान प्रतिशत कम होने की मुख्य वजह शादी का सीजन भी माना जा रहा है। शादी समारोह में व्यस्त होने के चलते लोग बूथों तक नहीं पहुंच सके। हालाकि कुछ स्थानों पर खुद दुल्हा दुल्हन वोट डालने के लिए बूथ पर पहुंचे। मतदान प्रतिशत कम होने की वजह दूसरे जिलों से लोगों का नहीं पहुंचना भी बताया जा रहा है। चुनाव में परिवहन व्यवस्था ठप होने के चलते भी लोग अपने जिले में नहीं पहुंच पाए। टैक्सी का किराया महंगा होने के चलते लोगों ने इसकी सुविधा नहीं ली। दिनभर चटक धूप रहने के चलते विकट गर्मी पड़ी। यह भी मतदान प्रतिशत घटाने का मुख्य कारण माना जा रहा है। कई बूथों पर लंबी लाइन होने के चलते भी लोग बिना वोट दिए ही लौट गए। भले ही लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही प्रदेशभर में सरगर्मियां तेज हो गई थीं। लेकिन, चुनाव के दिन वोटरों को बूथ तक लाने के सरकारी और दलों के प्रयास नाकाम साबित हुए। ग्रामीण इलाकों से लेकर मैदानी इलाकों तक यही स्थिति रही। प्रदेश में घटते मतदान प्रतिशत ने अब राजनैतिक दलों और प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ा दी है। कम मतदान को कोई भाजपा तो कोई इसे कांग्रेेस के लिए नुकसान बता रहा है। लेकिन इतना तय है कि कम मतदान ने प्रदेश की कुछ सीटों पर समीकरण बिगाड़ दिये हैं। खासकर त्रिकोणीय मुकाबले वाली टिहरी गढ़वाल और हरिद्वार सीट पर कम मतदान के चलते परिणाम चैंकाने वाले आने की उम्मीद जताई जा रही है।