नियमों की उड़ रही धज्जियां,अभिभावकों की जेब पर पड़ रहा अतिरक्त बोझ
उत्तराखण्ड सत्य,रूद्रपुर
शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए एक ओर मोदी सरकार ने देश में नई शिक्षा नीति और राइट टू एजुकेशन एक्ट जैसे कदम उठाए गए हैं, लेकिन जनपद के निजी स्कूलों की हकीकत कुछ और ही बयां करती है। यहां अभिभावकों के लिए अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना किसी जंग से कम नहीं है। नियम-कायदों को ताक पर रखकर स्कूल संचालक अपनी मनमानी पर उतर आए हैं और अभिभावक मजबूरी में चुपचाप यह सब सहते जा रहे हैं। स्कूलों में फीस वृद्धि और टीसी ना देने सहित कई मनमानियों की शिकायतें मिल रही हैं। इसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं होने से स्कूल संचालकों के हौंसले बुलंद हैं। शिक्षा विभाग का साफ निर्देश है कि पाठड्ढक्रम में एनसीईआरटी की किताबें ही शामिल हों, लेकिन रूद्रपुर सहित आस पास के कई निजी स्कूल इस नियम को ठेंगा दिखा रहे हैं। पाठ्यक्रम में एक-दो निजी प्रकाशकों की किताबें जबरन लगाई जा रही हैं और अभिभावकों को इन्हें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। ये किताबें न सिर्फ महंगी हैं, बल्कि इन्हें स्कूल द्वारा तय की गई खास दुकानों से ही लेना पड़ता है- सामान्य तौर पर 60-80 रुपए में मिलने वाली एनसीईआरटी की किताबों के मुकाबले ये निजी प्रकाशकों की किताबें कई गुना महंगी मिलती है। मिसाल के तौर पर, पहली-दूसरी कक्षा की किताबों का सेट 2500 से 3000 रुपए और छठी से आठवीं कक्षा की किताबें 4000 से 5000 रुपए तक में थमाई जा रही हैं। कुछ स्कूलों ने तो दूसरे प्रदेशों के बुक सेलरों के बकायदा स्टाल लगा रखे हैं। इन बुक सेलरों से मनमानी दामों में अभिभावकों को किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। अभिभावकों का कहना है कि बच्चों को पढ़ाना है और अच्छी शिक्षा देनी है इसलिए मजबूरी में निजी स्कूलों की मनमानी को सहन करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। अत्यधिक फीस बढ़ने के कारण वे बच्चों को दूसरे स्कूलों में भेजना चाह रहे हैं। लेकिन टीसी ना मिलने की दिक्कत आ रही है। अभिभावकों ने अनुसार निजी स्कूल अपने हिसाब से किताबों के रेट तय करते हैं और दुकान भी तय करते हैं कि यह किताबें कहां से लेना है, यहां तक कि नोटबुक खरीदने की दुकान भी स्कूल की ओर से तय की जाती है। हर नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत के साथ निजी स्कूलों का खेल शुरू हो जाता है। कॉपी-किताब से लेकर स्कूल ड्रेस, टाई और बैग तक, सब कुछ स्कूल द्वारा तय दुकानों से ही खरीदना पड़ता है। ये वो दुकानें हैं, जहां न तो दूसरा विकल्प मिलता है और न ही कीमतों पर कोई सवाल उठाने की गुंजाइश। एक दुकानदार ने बताया कि हमारी मजबूरी है, किताबें रखनी पड़ती हैं, लेकिन सारा खेल स्कूल प्रशासन और प्रकाशकों के बीच तय होता है। रेट भी वही फिक्स करते हैं, हम तो बस बेचते हैं। स्कूलों में अभिभावकों को एक स्लिप थमा दी जाती है, जिसमें लिखा होता है, फलां दुकान से सामान लें। दुकानों पर बोर्ड लगा है, कक्षा और स्कूल के हिसाब से कीमतें लिखी हैं और अभिभावक चुपचाप जेब ढीली करने को मजबूर हैं।इस मनमानी का सबसे बड़ा कारण है अभिभावकों की खामोशी। कोई भी खुलकर शिकायत करने को तैयार नहीं। डर यह है कि शिकायत की तो बच्चे का भविष्य दांव पर लग सकता है। जिसके चलते स्कूल संचालकों के हौसले बुलंद हैं। हालांकि, शिक्षा विभाग को पूरी मनमानी की जानकारी है लेकिन शिक्षा माफियाओं के खिलाफ कोई बड़ा एक्शन करने से कतराता है। स्कूल संचालकों की घुसपैठ विभाग में भी है। कभी कभार चेकिंग होती भी है तो चेकिंग करने वाले अधिकारियों को सब कुछ सामान्य नजर आता है।
कई स्कूलों में मानकों की हो रही अनदेखी
रूद्रपुर। शिक्षा आज पूरी तरह व्यवसाय का रूप ले चुकी है। अंधी कमाई के कारण प्राइवेट स्कूल कुकरमुत्तों की तरह खुल रहे हैं। बजाय सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के अधिकतर लोग प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना पसंद करते हैं। सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता होने के कारण प्राईवेट स्कूल संचालकों की दुकानें खूब फल फूल रही हैं। आलम यह है कि गली मोहल्लों में भी कान्वेंट स्कूल खुल रहे हैं। अगर सही में देखा जाए तो बहुत से प्राइवेट स्कूल ऐसे हैं जो सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरा नहीं उतरते हैं बावजूद इसके वह स्कूल चल रहे हैं। काफी स्कूलों में बच्चों के बैठने की भी उचित व्यवस्था नहीं है, बच्चों के खेलने के लिए ग्राउंड भी नहीं हैं, लेकिन फिर भी इन स्कूलों को मान्यता मिल जाती है। नियमानुसार हर स्कूल में खेलने के लिए ग्राउंड स्कूल से उचित दूरी पर होना चाहिए। कई स्कूलों में यह सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। स्कूलों के कमरे भी उस साइज के नहीं हैं जो शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्धारित किए गए हैं। कई प्राइवेट स्कूल किराए के भवनों में चल रहे हैं यदि अपने भवन हैं भी तो छोटे हैं। क्लास रूम ज्यादा बना दिए गए हैं ताकि दिखाया जा सके कि हर क्लास के लिए अलग कमरे की व्यवस्था है। सबसे बड़ी बात यह है कि जब विभाग का कोई अधिकारी इन स्कूलों के निरीक्षण पर आता है तो क्या वह इन सब बातों पर ध्यान देता है कि स्कूल के पास अपना क्या क्या इन्फ्रास्ट्रक्चर है या फिर खानापूर्ति करके कागजों का पेट भर दिया जाता है।कई स्कूलों में टॉयलेट छात्रें की संख्या के हिसाब से कम हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 25 लड़कियों के लिए व 30 लड़कों के लिए एक टॉयलेट होना चाहिए। सभी स्कूलों में फायर सेफ्रटी के लिए भी कोई कारगर कदम नहीं उठाए हैं जिससे यदि कोई आग की घटना हो जाती है तो बच्चों को कैसे बचाया जाए। स्कूल प्रतिवर्ष अपनी फीस बढ़ा कर बच्चों के अभिभावकों पर बोझ डाल देते है, लेकिन सरकार इस मामले में कुछ भी नहीं करती है। सरकार को इन स्कूलों का ऑडिट करवाना चाहिए तथा देखना चाहिए कि इतनी अधिक फीस होने के बावजूद इन स्कूलों में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी क्यों है। इनमे कार्यरत सभी अध्यापकों का अकेडेमिक रेकॉर्ड, अध्यापकों को कितना वेतन दिया जा रहा है, बिल्डिंग फंड के नाम पर कितना पैसा बटोरा जा रहा है, यह सब जांच का विषय है। बच्चों के अविभावक तो एक मोहरा बन गए हैं क्योंकि उन्हें तो अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर पढ़ाना है और इन स्कूलों की मनमानी के आगे वे बेबस नजर आते हैं। स्कूलों में अभिभावकों द्वारा बच्चों को लाने ले जाने के लिए जो छोटी गाडियां लगाई गई हैं उनमे बच्चों को ठूंस-ठूंस कर भरा जाता है जो इन बच्चों के साथ ज्यादती है! इस पर भी अंकुश लगाने की आवश्यकता है तथा पुलिस को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए जहां पर नियमों का उलंघन करके क्षमता से अधिक बच्चों को गाड़ियों में ठूंसा जा रहा हो, तुरंत आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए। लोगों का मानना है कि यदि सरकार बजाए नए स्कूल खोलने के वर्तमान सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता व अच्छे इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दे तो सरकारी स्कूल निजी स्कूलों से कहीं बेहतर कार्य कर सकते हैं।
निजी स्कूलों की शिकायत के लिए टॉल फ्री नंबर जारी
देहरादून। प्राईवेट स्कूलों में चल रही मनमानी की शिकायतें लगातार मिलने के बाद माध्यमिक शिक्षा विभाग ने निजी विद्यालयों से संबंधित विभिन्न शिकायतों के निपटारे के लिए टोल फ्री नंबर 1800 180 4275 जारी कर दिया है। अब इस नंबर पर अभिभावक निजी विद्यालयों से संबंधित शिकायतें दर्ज करा सकेंगे। शिक्षा मंत्री डॉ.धन सिंह रावत ने शिक्षा निदेशालय में आयोजित कार्यक्रम में नंबर जारी करते हुए कहा कि इस पर आने वाली शिकायतों पर विभागीय कार्रवाई की जाएगी। शिक्षा मंत्री ने टोल फ्री नंबर के साथ ही विभागीय वेबसाइट ेबीववसमकनबंजपवदण्नाण्हवअण्पद का भी विधिवत शुभारंभ किया। उन्होंने कहा, प्रदेशभर से अभिभावकों की निजी स्कूलों के शुल्क बढ़ाने, स्कूल ड्रेस एवं महंगी किताबें थोपे जाने की विभाग को लगातार शिकायतें मिल रही हैं। जिसको देखते हुए विभाग ने टोल फ्री नंबर जारी किया है। मंत्री ने कहा, इस नंबर पर अभिभावक प्रत्येक कार्यदिवस पर सुबह 9ः30 से शाम 5ः30 बजे तक कॉल करके अपनी समस्याएं एवं शिकायतें दर्ज करा सकते हैं। निदेशालय स्तर से सक्षम अधिकारी दर्ज शिकायतों का हर दिन मूल्यांकन कर संबंधित जिले के अधिकारियों को निस्तारण के लिए भेजेंगे। संबंधित जिले के अधिकारी प्राप्त शिकायत का निराकरण करते हुए निदेशालय को रिपोर्ट करेंगे।