ऐतिहासिक गुरूवायुर मंदिर के दर्शन अविस्मरणीय
नई दिल्ली। पंडित गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास के अध्यक्ष डा. राकेश मिश्र ने सपरिवार केरल और लक्षदीप की चार दिन की यात्रा के दौरान कई ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों के दर्शन किये और सभी के कल्याण की कामना की।
यात्रा के अनुभव साझा करते हुए डा. गणेश प्रसाद मिश्र ने बताया कि लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती बंदरगाह से प्रातः छह बजे वेसल द्वारा यात्रा शुरू हुई। यह एक बड़ा जहाज़ होता, जिसमें रेल और हवाई जहाज़ की तरह बुकिंग होती है। एक्जीक्यूटिव क्लास में चार सीटें केबिन में होती है। जिस पर उन्होंने सपरिवार बैठकर यात्रा की। कैप्टन ने जहाज़ के डैक पर ले जाकर पूरे पानी के जहाज़ की प्रक्रिया समझाई। यह बहुत ही रोमांचक अनुभव रहा।अगत्ती बंदरगाह पर कम पानी होने के कारण बड़ा जहाज़ नहीं जा सका, इसलिए छोटी नाव से कार के निकट पहुंचे। अगत्ती एयरपोर्ट के पहले सी सैल्स बीच रिसॉर्ट में जलपान किया। बाद में अगाती एयरपोर्ट से डेढ़ घंटे की अलायंस एयर की फ़्लाइट से कोचीन पहुँचे। कोचीन में पूरे परिवार का रघुपति जी ने स्वागत किया और उसके बाद कार से लगभग 90 किलोमीटर दूर त्रिशूर ज़िले में स्थित गुरुवायुर मंदिर पहुँचे।
डा. राकेश मिश्र ने आगे बताया कि गुरुवायुर मंदिर में इन दिनों गुरुवायुर उत्सव चल रहा है। फाल्गुन-चैत्र माह के अवसर पर 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में तीन हाथियों के द्वारा भगवान को बैठाकर यात्रा निकाली जाती है। यह उत्सव वर्ष में एक बार ही होता है। केरल के हर घर में उत्तर भारत की तरह ही दीपावली और नवरात्रि की भांति यह त्यौहार मनाया जाता है। गुरुवायुर मंदिर गुरु और वायु दोनों से मिलकर बना हैं। यह भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप है। कहते हैं भगवान द्वारिका से यहाँ पर पहुँचे थे। केरल के गुरुवायुर मंदिर में हाथी दान देने की परम्परा है। यहाँ पर अन्य भव्य मंदिरों के भी दर्शन किए। जिसमें आदि गणेशजी, रूद्र देवता, महालक्ष्मीजी व विष्णु भगवान के भव्य मंदिर हैं ।ऐसी मान्यता है कि शंकर भगवान का मंदिर है, बिना रूद्र भगवान के दर्शन के यह यात्रा पूरी नहीं होती है।
गुरूवायूर मंदिर में एक परंपरा यह भी है कि तुलाभारम, जिसमें व्यक्ति के बराबर की सामग्री बडी तराज़ू में तौलकर भगवान को समर्पित की जाती है। उन्होंने अपने पुत्र चिरंजीव संकल्प मिश्र (एडवोकेट) के वजन के बराबर 72 किलो चावल भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर श्री गुरुवायुर में समर्पित किये। ऐसी मान्यता है कि जो मन की इच्छा होती है वह भगवान पूरी करते हैं।
डा. राकेश मिश्र ने बताया कि उत्सव में प्रतिदिन एक लाख लोगों के लिए भोजन बनता है। सबेरे 10 से दोपहर 2 बजे तक और शाम को 7 से दस बजे तक निरंतर भोजन बैठकर कराया जाता है। सभी भक्त गण मिलकर भोजन बनाने में सहयोग करते हैं। सब्ज़ी काटना, दाल, चावल बनाने की तैयारी करते हैं। यह अपने आप कुर्सी टेबिल पर बैठकर के केले के पत्ते में स्वादिष्ट दक्षिण भारतीय व्यंजन प्रसाद रूप में मिलता है ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले पाँच वर्षों में दो बार इस मंदिर में भगवान गुरूवायूर की पूजा अर्चना करने आ चुके हैं। दक्षिण भारतीय मंदिरों में बिना बिजली के केवल दीपक में तेल और रूई बत्ती से ही पूरी रोशनी की जाती है। यह अपने आप में एक मनमोहक दृश्य होता है। हर जगह मंदिर में केले के पत्ते पर छोटा सा चंदन व फूल मिलता है।जिन्हें घर ले जाया जाता है। डा. राकेश मिश्र ने बताया कि उन्होंने मौनयोगी स्वामी जी के आश्रम में सांईंबाबा के दर्शन किये। स्वामी जी ने भगवान गुरूवायूर का चित्र भेंट किया व अंगवस्त्र से हमारे परिवार का सम्मान किया। इस दौरान गुरूवायूर की प्रमुख कार्यकर्ता ज़िलाध्यक्ष श्रीमती निवेदिता जी की टीम पूरे समय दर्शन में उपस्थित रही। केरल व लक्षद्वीप की चार दिन की यात्रा पूरी करके वह सकुशल वापस दिल्ली लौटे।