धराली, थराली और पौड़ी के जख्मों से लिया सबक, धामी सरकार संवेदनशील व व्यावहारिक नीति पर कर रही मंथन
उत्तराखण्ड सत्य,देहरादून
उत्तराखंड एक बार फिर प्राकृतिक आपदाओं के गहरे जख्म झेल रहा है। कभी बादल फटने की विभीषिका, कभी भूस्खलन तो कभी नदियों का प्रचंड उफान। पहाड़ों की ये त्रसदियां हर बार सैकड़ों परिवारों को बेघर करती हैं और जीवनयापन की जड़ों को हिला देती हैं। हाल ही में उत्तरकाशी के धराली और स्यानाचट्टðी, चमोली के थराली और पौड़ी के कुछ गांवों में आई आपदाओं ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। इन हालातों ने सरकार को एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर किया है कि मौजूदा राहत और पुनर्वास मानक अब इन आपदाओं से जूझने के लिए नाकाफी हैं। धराली का बड़ा हिस्सा इस बार खीरगंगा की बाढ़ की भेंट चढ़ गया। घर, दुकानें, खेत और बुनियादी ढांचाकृसब कुछ मलबे में तब्दील हो गया। थराली में भूस्खलन और मलबे ने ग्रामीणों की रोजी-रोटी पर गहरी चोट की है। वहीं पौड़ी जनपद के कई गांवों में भूस्खलन ने लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। पीड़ित परिवार अब राहत शिविरों और रिश्तेदारों के घरों में दिन काट रहे हैं। आपदा प्रबंधन से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार के नुकसान ने स्पष्ट कर दिया है कि केंद्र और राज्य की मौजूदा राहत व पुनर्वास व्यवस्था बेहद अपर्याप्त है। इससे पहले जोशीमठ भूधंसाव के वक्त भी राज्य सरकार को एक अलग राहत व पुनर्वास पैकेज बनाना पड़ा था। लेकिन हर आपदा के बाद अलग पैकेज बनाना लंबी प्रक्रिया है, जिससे पीड़ितों तक मदद पहुंचने में देरी होती है। धामी सरकार का मानना है कि पूरे राज्य के लिए एक समान पुनर्वास नीति बनाई जानी चाहिए, ताकि आपदा प्रभावितों को तत्काल और पर्याप्त सहायता मिल सके। नई नीति बनने के बाद पीड़ितों को राष्ट्रीय व राज्य आपदा मोचन निधि के तय मानकों से अधिक मदद उपलब्ध कराई जा सकेगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अफसरों को निर्देश दिए हैं कि आपदा के प्रति संवेदनशीलता और व्यावहारिकता को आधार मानकर नीति तैयार की जाए। धामी का कहना है कि हमारी सरकार की कोशिश है कि आपदा प्रभावितों को अधिक से अधिक सहायता मुहैया कराई जाए। नई नीति उन्हें न सिर्फ तत्काल राहत देगी, बल्कि उन्हें दोबारा मुख्यधारा से जुड़ने में मददगार साबित होगी। उत्तराखंड में आपदाओं का इतिहास बताता है कि चाहे 2013 की केदारनाथ त्रसदी हो, 2021 का जोशीमठ भूधंसाव या हालिया धराली-थराली की तबाहीकृहर बार सरकार को अस्थायी पैकेज बनाना पड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि एक स्थायी और संवेदनशील नीति न सिर्फ राहत वितरण को सरल बनाएगी बल्कि आपदाओं से विस्थापित परिवारों के पुनर्वास में पारदर्शिता और गति भी लाएगी।