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    Home » संगठन-सत्ता संतुलन से थमी सत्ता परिवर्तन की अटकलें
    उत्तराखंड

    संगठन-सत्ता संतुलन से थमी सत्ता परिवर्तन की अटकलें

    उत्तराखंड सत्यBy उत्तराखंड सत्यJuly 5, 2025Updated:July 5, 2025No Comments5 Mins Read
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    सरकार और संगठन में निकट भविष्य में कोई बड़े बदलाव की संभावनाएं टली
    उत्तराखण्ड सत्य,देहरादून

    उत्तराखंड की राजनीति में जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों का महत्व हमेशा से अहम रहा है। ऐसे में भाजपा हाईकमान द्वारा महेंद्र भट्ट को एक बार फिर उत्तराखंड भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया जाना न केवल संगठनात्मक विश्वास की पुष्टि है, बल्कि यह राज्य की राजनीतिक समीकरणों को भी साधने का एक सुविचारित निर्णय माना जा रहा है। महेंद्र भट्ट की दोबारा ताजपोशी ने उस राजनीतिक अस्थिरता की आशंका पर भी विराम लगा दिया है, जो हालिया दिनों में मंत्रिमंडल विस्तार की देरी और नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं को लेकर गर्म थी। उत्तराखंड की राजनीति में अक्सर मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के चयन में क्षेत्रीय (गढ़वाल-कुमाऊं) और जातीय (ब्राह्मण-ठाकुर) संतुलन का ध्यान रखा जाता रहा है। वर्तमान में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कुमाऊं से ठाकुर जाति से हैं, जबकि महेंद्र भट्ट गढ़वाल क्षेत्र से ब्राह्मण हैं। यह संतुलन भाजपा के पारंपरिक फार्मूले को प्रतिबिंबित करता है, जिसे पार्टी वर्षों से निभाती आ रही है। भाजपा के इस निर्णय से यह स्पष्ट संकेत गया है कि पार्टी नेतृत्व न केवल प्रदेश संगठन से संतुष्ट है, बल्कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल को भी मजबूती देना चाहता है। राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो महेंद्र भट्ट की दोबारा नियुक्ति इस बात का प्रतीक है कि हाईकमान किसी भी बड़े संगठनात्मक फेरबदल के मूड में नहीं है और वर्तमान नेतृत्व पर विश्वास बनाए हुए है। हालांकि राज्य में मंत्रिमंडल में रिक्त पदों और मुख्यमंत्री के पास अधिकाधिक विभागों के केंद्रित रहने को लेकर काफी समय से अटकलें थीं कि कहीं नेतृत्व परिवर्तन की तैयारी तो नहीं चल रही है। लेकिन अब भाजपा के इस फैसले के बाद यह लगभग तय हो गया है कि सरकार और संगठन में निकट भविष्य में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा आमतौर पर चुनावी साल के एक डेढ़ वर्ष पूर्व सत्ता विरोधी लहर को थामने के लिए नेतृत्व परिवर्तन का सहारा लेती रही है। हालांकि, फिलहाल के समीकरणों को देखकर कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री धामी की कुर्सी सुरक्षित है। यदि भविष्य में बदलाव की कोई संभावना बनती भी है, तो वह समीकरण एक बार फिर कुमाऊं क्षेत्र के ठाकुर चेहरे के पक्ष में ही जाएगा, क्योंकि वर्तमान फार्मूले को संतुलित रखने की परंपरा भाजपा में गहराई से रची-बसी है। महेंद्र भट्ट के दोबारा अध्यक्ष बनने पर भाजपा सांसद अनिल बलूनी ने संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर जोर देते हुए कहा कि जिस तरह की चुनाव प्रणाली भाजपा अपनाती है, वैसी किसी अन्य दल में देखने को नहीं मिलती। वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी भट्ट की कार्यशैली की सराहना करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में संगठन का विस्तार हुआ है और सभी चुनावों में भाजपा को जीत हासिल हुई है। महेंद्र भट्ट का एक सामाजिक कार्यकर्ता से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक का लंबा और प्रेरणादायक राजनीतिक सफर, भाजपा की सांगठनिक मजबूती और जमीनी पकड़ को रेखांकित करता है। उनके दोबारा अध्यक्ष बनने से यह स्पष्ट है कि भाजपा न केवल जमीनी कार्यकर्ताओं पर भरोसा करती है, बल्कि राज्य में स्थिर और संतुलित नेतृत्व देने के लिए प्रतिबद्ध भी है। राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो महेंद्र भट्ट की वापसी एक रणनीतिक कदम है, जो न केवल संगठन के भीतर एकता और स्थिरता लाएगा, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनाव की राह भी अधिक सधे और संतुलित तरीके से तय करेगा।

    पंचायत चुनाव के बाद होगा महेंद्र भट्ट की टीम का ऐलान
    देहरादून। उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दोबारा कमान संभालते ही महेंद्र भट्ट ने संगठनात्मक गतिविधियों को तेज कर दिया है। एक ओर जहां पार्टी कार्यालय पर उन्हें बधाई देने का सिलसिला लगातार जारी है, वहीं दूसरी ओर भट्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि फिलहाल उनका सारा ध्यान आगामी पंचायत चुनावों पर केंद्रित है। देहरादून स्थित बलबीर रोड पर भाजपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित पंचायत चुनाव को लेकर बैठक में हिस्सा लेने के बाद प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि उनका पहला उद्देश्य पंचायत चुनाव की तैयारियों को गति देना है। उन्होंने दो टूक कहा कि, ष्नए अध्यक्ष के रूप में सबसे बड़ी चुनौती पंचायत चुनाव है और पार्टी हर स्थिति में जनता के बीच पहुंचकर जीत दर्ज करने के लिए प्रतिबद्ध है। महेंद्र भट्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह फिलहाल प्रदेश कार्यकारिणी के गठन को लेकर विचार नहीं कर रहे हैं। हालांकि पार्टी के अंदर और बाहर इस बात को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं कि प्रदेश अध्यक्ष अपनी नई टीम में किन चेहरों को जगह देंगे। पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं का प्रदेश अध्यक्ष से लगातार संपर्क और मुलाकातों का दौर इस उम्मीद में जारी है कि वे भविष्य की कार्यकारिणी में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर सकें। भाजपा संगठनात्मक ढांचे की बात करें तो प्रदेश कार्यकारिणी में एक अध्यक्ष के साथ 8 उपाध्यक्ष, 3 महामंत्री, 8 मंत्री, 1 कोषाध्यक्ष, 1 कार्यालय सचिव सहित विभिन्न मोर्चोंकृमहिला मोर्चा, युवा मोर्चा, किसान मोर्चा, ओबीसी मोर्चा, एससी मोर्चा, एसटी मोर्चा और अल्पसंख्यक मोर्चाकृके अध्यक्षों की नियुक्तियाँ की जाती हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि कार्यकारिणी में ष्महामंत्री (संगठन) का पद होता है, जिसकी नियुक्ति प्रदेश अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में नहीं होती है। यह पद सीधे आरएसएस (संघ) की ओर से तय किया जाता है। इस बार चर्चाएं हैं कि भाजपा के 30 प्रतिशत महिला आरक्षण के संकल्प को ध्यान में रखते हुए प्रदेश कार्यकारिणी में भी महिला नेतृत्व को प्राथमिकता दी जा सकती है। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि तीन महामंत्रियों में से एक पद महिला को दिया जा सकता है। इससे प्रदेश संगठन में महिला भागीदारी का स्पष्ट संदेश जाएगा और पार्टी के सामाजिक संतुलन की नीति को मजबूती मिलेगी। फिलहाल भाजपा का पूरा ध्यान पंचायत चुनावों पर है, जो प्रदेश में जमीनी पकड़ को मजबूत करने का अवसर साबित हो सकते हैं। महेंद्र भट्ट का नेतृत्व और उनकी चुनावी रणनीति इस दिशा में कितनी सफल होती है, यह आने वाले समय में तय होगा। लेकिन इतना स्पष्ट है कि भाजपा प्रदेश नेतृत्व इस बार संगठन और चुनाव दोनों में संतुलन बनाकर आगे बढ़ने की तैयारी में है।

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