अवैध कालोनियों में प्लाट खरीदने वालों की भी उड़ी नींद, कई निर्माण अधर में लटके, निवेश करने वालों का भी सपना टूटा
उत्तराखण्ड सत्य,रूद्रपुर
जिले में अवैध कॉलोनियों पर जिला विकास प्राधिकरण का शिकंजा कसने के बाद दिवाली से पहले कालोनाइजरों और प्रॉपर्टी डीलरों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। प्राधिकरण ने डीएम के आदेश पर जिले की करीब 900 कॉलोनियों को अवैध घोषित करते हुए यहां किसी भी तरह के नए निर्माण पर रोक लगा दी है। इस कदम से न सिर्फ कॉलोनाइजरों और प्रॉपर्टी डीलरों में हड़कम्प मचा है, बल्कि उन हजारों लोगों के सपनों पर भी ताला लग गया है जिन्होंने इन कॉलोनियों में जमीन खरीदकर अपने घर बनाने की शुरुआत की थी। जिले में नजूल भूमि पर कब्जे और अनियंत्रित निर्माण की शिकायतें लंबे समय से सामने आ रही थीं। इन्हीं शिकायतों को आधार बनाकर प्राधिकरण ने रुद्रपुर, काशीपुर, बाजपुर, खटीमा, नानकमट्टòा, गदरपुर, दिनेशपुर और जसपुर क्षेत्र की कॉलोनियों में निर्माण पर रोक लगा दी। इन इलाकों में कॉलोनियां बिना किसी कानूनी प्रक्रिया या विकास मानकों के विकसित हो रही थीं। औद्योगिक गतिविधियों और बड़ी कंपनियों की मौजूदगी के कारण यहां आबादी तेजी से बढ़ी, जिसका फायदा उठाकर प्रॉपर्टी डीलरों और बिल्डरों ने बड़े पैमाने पर अवैध कॉलोनियां खड़ी कर दीं। जिला विकास प्राधिकरण के सचिव पंकज उपाध्याय का कहना है कि जिले में करीब 900 कॉलोनियां अवैध रूप से विकसित की गई हैं। जिलाधिकारी के निर्देश पर सभी निर्माण कार्य रोक दिए गए हैं। नियम तोड़ने वालों पर सख्त कार्रवाई होगी और अवैध निर्माण को न केवल रोका जाएगा, बल्कि जरूरत पड़ने पर गिराया भी जा सकता है। प्रशासन के अनुसार, जमीन की बिक्री का बड़ा हिस्सा वैधानिक रजिस्ट्री के बजाय स्टाम्प डीड के जरिए हो रहा था, जो गड़बड़ी का साफ संकेत है। इस कार्रवाई से उन लोगों की परेशानी भी बढ़ गई है जिन्होंने इन कॉलोनियों में भारी निवेश किया था। कई लोगों ने कर्ज लेकर प्लॉट खरीदे और मकान निर्माण शुरू किया, लेकिन अब अचानक रोक लगने से उनका सपना टूट गया है। शहर में कई स्थानों पर मकान निर्माण का काम अधर में लटक गया है। यही वजह है कि प्रभावित लोग प्रशासन से नाराज भी हैं। प्रशासन का तर्क है कि इन कॉलोनियों में न तो ड्रेनेज, सड़क और पार्किंग जैसी मूलभूत सुविधाएं हैं और न ही इनके लिए विधिवत स्वीकृति ली गई। इसके बावजूद सवाल उठ रहे हैं कि जब ये कॉलोनियां अवैध थीं तो इतने वर्षों तक प्रशासन ने कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या यह लापरवाही थी या इसके पीछे किसी और तरह की मिलीभगत? इन सवालों के जवाब तलाशने की जरूरत है, ताकि भविष्य में इस तरह की गड़बड़ियों की पुनरावृत्ति न हो। गौरतलब है कि जिला विकास प्राधिकरण का गठन वर्ष 2017 में हुआ, जबकि जिन कॉलोनियों पर कार्रवाई हो रही है, उनमें अधिकांश पहले ही बस चुकी थीं। प्राधिकरण का दावा है कि वर्तमान में जो नए निर्माण हो रहे हैं, वे बिना अनुमति के हैं, इसलिए उन्हें अवैध माना गया है। लेकिन लोगों का कहना है कि प्राधिकरण अब 1998 के पुराने नोटिस उठाकर कार्रवाई कर रहा है, जबकि वास्तविकता को दरकिनार किया जा रहा है। इस पूरे मामले ने प्रशासनिक व्यवस्था पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर जहां प्रशासन इसे शहर के सुनियोजित विकास और नागरिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम बता रहा है, वहीं दूसरी ओर आम लोगों के सामने अपने घर और निवेश डूबने का संकट खड़ा हो गया है। दिवाली के ठीक पहले आई इस कार्रवाई ने जिले भर में प्रॉपर्टी कारोबार से जुड़े लोगों के बीच भारी मायूसी फैला दी है।
प्रशासन की भूमिका पर उठ रहे सवाल
रुद्रपुर। जिले में अवैध कॉलोनियों पर जिला विकास प्राधिकरण की कार्रवाई ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जब ये कॉलोनियां वर्षों से बस रही थीं, तब प्रशासन कहां सोया हुआ था? हजारों लोग जमीन खरीदकर अपने घर बनाने का सपना बुन चुके हैं, बिजली-पानी के कनेक्शन तक मिल चुके हैं, बच्चों की हंसी-खुशी से गलियां गूंज रही हैं, लेकिन अब अचानक इन्हीं कॉलोनियों को अवैध बताकर निर्माण रोक देना लोगों को धोखे जैसा लग रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर प्रशासन शुरू से ही चौकस रहता और कॉलोनाइजरों पर अंकुश लगाता तो आज आम खरीदारों की गाढ़ी कमाई दांव पर न लगती। सवाल उठना लाजिमी है कि इतनी बड़ी संख्या में कॉलोनियां खड़ी हो गईं, प्लॉट की रजिस्ट्री होती रही, मकान खड़े होते रहे और प्रशासन को भनक तक नहीं लगी या फिर उसने आंखें मूंद लीं? यही नहीं, अब तो 1998 के पुराने नोटिस तक निकालकर कार्रवाई की जा रही है, मानो वर्षों की नींद के बाद अचानक एक दिन सबकुछ अवैध याद आ गया हो। प्राधिकरण का कहना है कि यह कदम सुनियोजित विकास के लिए जरूरी है, लेकिन लोगों का दर्द अलग है। वे पूछ रहे हैं कि उनके सपनों के घर आधे-अधूरे छोड़कर प्रशासन क्यों अब जागा? दिवाली से पहले की इस कार्रवाई ने हजारों परिवारों को असमंजस और हताशा में धकेल दिया है और साथ ही प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर असली जिम्मेदारी किसकी है और भविष्य में ऐसी गड़बड़ियों से बचाव की गारंटी कौन देगा।

 
									 
					