लगातार चुनावी हार के बावजूद नहीं थम रही अंदरूनी कलह
उत्तराखण्ड सत्य,रुद्रपुर
भारतीय जनता पार्टी जहां मिशन 2027 को साधने के लिए जमीनी स्तर पर पूरी ताकत झोंक चुकी है, वहीं कांग्रेस आज भी गुटबाजी की दलदल से उबरने को तैयार नहीं दिख रही है। संगठन को मजबूत करने के लिए कांग्रेस नेतृत्व बार-बार अपील कर रहा है, सृजन अभियान जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात कुछ और ही तस्वीर पेश कर रहे हैं। रुद्रपुर में गुरुवार को इसका नजारा उस समय देखने को मिला जब कांग्रेस की संगठन सृजन अभियान बैठक एकाएक अखाड़े में बदल गई। नगर इकाई के गठन को लेकर बुलाए गए इस कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं के दो गुट आपस में भिड़ गए और लात-घूंसे चलने लगे। बैठक का आयोजन नगर इकाइयों के गठन को लेकर किया गया था। इसमें एआईसीसी पर्यवेक्षक डॉ- नरेश कुमार, पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा समेत कई वरिष्ठ कांग्रेस नेता मौजूद थे। पर्यवेक्षक कार्यकर्ताओं से रायशुमारी कर ही रहे थे कि अचानक बहस शुरू हो गई। थोड़ी ही देर में यह बहस गाली-गलौच तक जा पहुंची और फिर माहौल इतना बिगड़ गया कि दोनों पक्षों के बीच जमकर हाथापाई शुरू हो गई। देखते ही देखते सिटी क्लब का सभागार रणभूमि में बदल गया और अफरा-तफरी मच गई। पर्यवेक्षकों और वरिष्ठ नेताओं ने किसी तरह स्थिति को संभालने की कोशिश की, लेकिन गुटबाजी की आग इतनी भड़क चुकी थी कि कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं था। काफी मशक्कत के बाद मामला शांत हुआ। इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कांग्रेस की अंदरूनी कलह उसकी जड़ों को लगातार खोखला कर रही है। गौरतलब है कि कांग्रेस नेतृत्व लगातार संगठन को धार देने की कोशिशों में जुटा है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी खुद संगठन को जमीनी स्तर पर सशक्त बनाने के लिए रणनीति बना रहे हैं। इसी कड़ी में सृजन संगठन अभियान शुरू किया गया, ताकि गुटबाजी और अंतर्कलह से ऊपर उठकर कार्यकर्ता एकजुट हों और आगामी विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी को मजबूत आधार मिल सके। लेकिन हकीकत यह है कि जिले के स्तर पर कांग्रेस कई गुटों में बंटी हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव, निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव लगातार हर स्तर पर कांग्रेस को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी और इसका सबसे बड़ा कारण गुटबाजी ही रही। सात माह पूर्व हुए निकाय चुनाव में भी गुटबाजी चरम पर रही, जिसके चलते पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद कांग्रेसी अब तक सबक लेने को तैयार नहीं दिखते। हालात यह हैं कि संगठन सृजन जैसी अहम बैठक भी गुटबाजी की भेंट चढ़ गई और पार्टी की अनुशासनहीनता सरेआम उजागर हो गई। यह घटना कांग्रेस के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं है। जब प्रतिद्वंद्वी भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटकर संगठन को धार दे रही है, तब कांग्रेस अपने ही अंतर्विरोधों और गुटबाजी में उलझकर कमजोर हो रही है। लगातार चुनावी हार के बावजूद आत्ममंथन और एकजुटता की बजाय हाथापाई जैसी घटनाएं यह दर्शाती हैं कि कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा गहरी दरारों से गुजर रहा है। सवाल यही है कि क्या कांग्रेस इन आंतरिक कलहों से उबरकर खुद को नए सिरे से खड़ा कर पाएगी या फिर गुटबाजी उसकी हार की कहानी को और गहराई तक लिखती रहेगी।