साईबर ठगों के जाल में फंसकर लोग गंवा रहे मेहनत की कमाई
उत्तराखण्ड सत्य,रूद्रपुर
डिजिटल दुनिया की चमक- दमक के बीच अब साइबर ठगों ने नए निशाने तय कर लिए हैं मासूम बच्चे। ऑनलाइन गेमिंग के बढ़ते चलन ने जहां मनोरंजन का नया जरिया दिया है, वहीं अब यह ठगों के लिए आसान शिकार का मैदान बनता जा रहा है। ‘गेम खेलो और पैसे कमाओ’ जैसे आकर्षक विज्ञापन देकर ठग न सिर्फ बच्चों को फंसा रहे हैं, बल्कि उनके जरिए पूरे परिवार को आर्थिक संकट में डाल रहे हैं। पिछले एक वर्ष में साइबर ठगी से जुड़े सैकड़ों बैंक खाते फ्रीज किए गए हैं। इनमें बड़ी संख्या उन खातों की है जो ऑनलाइन गेमिंग या अज्ञात खातों में पैसे ट्रांसफर करने से जुड़े पाए गए। लगातार चल रहे जागरूकता अभियानों के बावजूद लोग बार-बार वही गलती दोहरा रहे हैं, जिसका फायदा साइबर अपराधी उठा रहे हैं। ठगों का तरीका बेहद चालाकी भरा होता है। वे बच्चों को ऑनलाइन गेम के माध्यम से पहले आकर्षित करते हैं और फिर गेम जीतने पर इनाम या गेम में निवेश कर कमाई करनेय् का लालच देते हैं। शुरुआत में कुछ रुपये जमा करवाने के नाम पर बच्चों से उनके परिजनों के गूगल पे या बैंक अकाउंट से ट्रांजेक्शन करवा ली जाती है। जैसे ही यह पैसा उस खाते में पहुंचता है, जिसमें पहले से ही ठगी के पैसे आते-जाते रहते हैं, तो साइबर सेल की निगरानी प्रणाली उसे संदिग्ध पाते ही तुरंत ब्लॉक कर देती है। नतीजतन, पैसे भेजने वाला खाता भी फ्रीज कर दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद परिवार परेशान हो जाता है। परिजनों को अपने बैंक खाते दोबारा चालू करवाने के लिए कभी बैंक शाखा तो कभी पुलिस थाने के चक्कर काटने पड़ते हैं। कई मामलों में जांच पूरी होने में महीनों लग जाते हैं, जिससे परिवार को न सिर्फ आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है बल्कि मानसिक रूप से भी गहरी परेशानी झेलनी पड़ती है। विशेषज्ञों का कहना है कि साइबर अपराधी अब तकनीक और मनोविज्ञान दोनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे बच्चों की जिज्ञासा और लालच की भावना को भुनाकर उन्हें जाल में फंसा लेते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और गेमिंग ऐप्स पर आने वाले फ्पैसे कमाने वाले गेमय् के विज्ञापन इस जाल का पहला कदम होते हैं। बच्चे अक्सर बिना परिजनों से पूछे ऐसे लिंक पर क्लिक कर लेते हैं, जिससे उनके मोबाइल में हानिकारक एप्लिकेशन डाउनलोड हो जाती है या उनकी ट्रांजेक्शन डिटेल ठगों तक पहुंच जाती है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इस तरह के मामलों में सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव है। बच्चों को डिजिटल व्यवहार के प्रति जागरूक करना जरूरी है। परिजनों को चाहिए कि वे अपने बच्चों के मोबाइल उपयोग पर निगरानी रखें और किसी भी संदिग्ध एप या लिंक को डाउनलोड न करने की सलाह दें। वहीं, यदि किसी खाते के फ्रीज होने की स्थिति उत्पन्न हो जाए, तो तुरंत बैंक और साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 पर संपर्क किया जाना चाहिए। साइबर अपराधियों के इस नए तौर-तरीके ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब डिजिटल सुरक्षा केवल बड़ों की नहीं, बल्कि बच्चों की भी प्राथमिक चिंता बन चुकी है।
बैंक और साइबर सेल के चक्कर में लोग परेशान
रूद्रपुर। ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में साइबर ठगी का शिकार बनने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। खास बात यह है कि अब ठगी का सीधा असर सिर्फ पैसों की हानि तक सीमित नहीं रहा, बल्कि हजारों लोगों के बैंक खाते भी फ्रीज हो चुके हैं। इनमें से कई खाताधारक तो ऐसे हैं जिन्होंने अनजाने में कुछ रुपये गेमिंग ऐप में ट्रांसफर किए थे, पर अब उनके लाखों रुपये बैंक खाते में फंसे हैं और वे उन्हें निकाल नहीं पा रहे हैं। रूद्रपुर, हल्द्वानी, देहरादून और हरिद्वार जैसे शहरों में पिछले कुछ महीनों में ऐसे सैकड़ों मामले सामने आए हैं। पुलिस और बैंक अधिकारियों के मुताबिक, गेमिंग एप्स के जरिये होने वाले इन फर्जी ट्रांजेक्शन के कारण बैंक सिस्टम स्वतः ही संदिग्ध खातों को फ्रीज कर देता है। जब तक साइबर सेल जांच पूरी नहीं करती, खाते में जमा रकम निकाली नहीं जा सकती। ऐसे ही कई परिवार हैं जो फ्रीज खातों के झंझट में फंसे हुए हैं। साइबर सेल के अधिकारियों का कहना है कि ठगी वाले खातों से जुड़ी हर ट्रांजेक्शन की बारीकी से जांच करनी पड़ती है, ताकि अपराधियों का नेटवर्क पकड़ा जा सके। लेकिन जांच प्रक्रिया में समय लगने से आम लोगों की दिक्कतें बढ़ जाती हैं। बैंक अधिकारी मानते हैं कि इस स्थिति से ग्राहक असहज हैं, पर सुरक्षा कारणों से खाते तुरंत खोलना संभव नहीं होता। उनके पास कई शिकायतें आती हैं कि खाते में लाखों रुपये फंसे हैं। लेकिन जब तक पुलिस से ‘नो ऑब्जेक्शन’ नहीं मिलता, तब तक खाते को एक्टिव नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति साइबर साक्षरता की कमी को उजागर करती है। ऑनलाइन गेमिंग या इनाम वाले ऐप्स में पैसे लगाने से पहले स्रोत की प्रामाणिकता जांचना बेहद जरूरी है। एक छोटी सी असावधानी पूरे परिवार के लिए आर्थिक संकट बन सकती है। आज जहां एक तरफ डिजिटल इंडिया का सपना तेजी से साकार हो रहा है, वहीं इन फ्रीज खातों में फंसे लाखों रुपये इस हकीकत की भी याद दिलाते हैं कि तकनीक की सुरक्षा समझ के बिना डिजिटल सुविधा खतरनाक साबित हो सकती है।

 
									 
					