देवभूमि की पवित्रता को बचाने के लिए चल रहा ऑपरेशन कालनेमि,अब तक तीन सौ से अधिाक गिरफ्तार
उत्तराखण्ड सत्य,देहरादून
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहाँ की पहचान उसकी सांस्कृतिक आस्था, आध्यात्मिक परंपरा और सनातन संस्कृति से है। यही वह धरोहर है, जिसने इस राज्य को देश और दुनिया में विशिष्ट स्थान दिलाया है। लेकिन समय-समय पर ऐसे तत्व सामने आते रहे हैं, जो अपनी पहचान छिपाकर इसी आस्था की आड़ में ठगी, छल और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने लगे थे। यह प्रवृत्ति न केवल धार्मिक भावनाओं के साथ िखलवाड़ थी, बल्कि देवभूमि की मूल आत्मा पर भी चोट थी। ऐसे माहौल में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जिस साहस और दृढ़ता के साथ ‘ऑपरेशन कालनेमि’ की शुरुआत की, वह सरकार की प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है। अभियान की शुरुआत से ही प्रशासन और पुलिस को सख्त निर्देश दिए गए कि पहचान छिपाकर अपराध करने वालों और साधु-संत का वेश धारण कर जनता को भ्रमित करने वालों के िखलाफ कोई ढिलाई न बरती जाए। नतीजा यह हुआ कि कुछ ही समय में पूरे प्रदेश में इस ऑपरेशन का असर दिखाई देने लगा। अब तक करीब चार हजार लोगों का सत्यापन किया जा चुका है और इनमें से तीन सौ से अधिक गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। आँकड़े खुद बताते हैं कि कार्रवाई केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि वास्तविक स्तर पर हो रही है। हरिद्वार जैसे धार्मिक नगर में अकेले 2301 लोगों का सत्यापन और 162 गिरफ्तारियां हुई हैं, जबकि राजधानी देहरादून में 865 सत्यापन के बाद 113 गिरफ्तारी दर्ज की गई है। उधम सिंह नगर जिले में भी 167 लोगों की जाँच कर 17 को गिरफ्तार किया गया। यह आँकड़े दर्शाते हैं कि सरकार उन जिलों को विशेष रूप से प्राथमिकता दे रही है, जहाँ बाहरी गतिविधियों की शिकायतें लगातार मिल रही थीं। इस अभियान का एक और महत्वपूर्ण पहलू है उसका प्रतीकात्मक नामकरण। रामायण और महाभारत में वर्णित कालनेमि असुरता और छल का प्रतीक माना जाता है। रामायण में कालनेमि ने साधु का वेश धारण कर हनुमानजी को भ्रमित करने का प्रयास किया था ताकि वे संजीवनी बूटी लाने में असफल हो जाएँ। लेकिन हनुमान ने उसकी असलियत भांपकर उसका वध कर दिया। महाभारत काल में यही कालनेमि कंस के रूप में जन्मा और भगवान श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया। मुख्यमंत्री धामी ने इस संदर्भ को जोड़ते हुए कहा था कि जैसे कालनेमि ने साधु का रूप धरकर छल किया था, वैसे ही आज भी कई लोग संत और साधु की आड़ लेकर समाज में भ्रम फैलाने और अपराध करने का काम कर रहे हैं। इसीलिए इस अभियान का नाम ‘ऑपरेशन कालनेमि’ रखा गया, ताकि इसका संदेश केवल कार्रवाई तक सीमित न रहकर सांस्कृतिक चेतना तक पहुँचे। धामी सरकार का यह कदम केवल कानून-व्यवस्था की कार्रवाई भर नहीं है, बल्कि यह देवभूमि की पहचान को सुरक्षित रखने का संकल्प भी है। उत्तराखंड जैसे छोटे लेकिन संवेदनशील राज्य में जहां हर साल लाखों की संख्या में तीर्थयात्री और श्रद्धालु आते हैं, वहाँ धार्मिक भावनाओं के नाम पर ठगी या छल करना सीधी चुनौती है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री धामी ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी है कि देवभूमि की पवित्रता के साथ िखलवाड़ करने वालों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। उनकी यह घोषणा जनता में भरोसा जगाती है कि राज्य सरकार धर्म और आस्था से जुड़ी हर चुनौती का डटकर सामना करेगी। देहरादून में हाल ही में पकड़ा गया बांग्लादेशी नागरिक भी इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार बाहरी तत्व फर्जी पहचान बनाकर प्रदेश में घुसपैठ कर रहे हैं। यदि समय रहते ऐसे मामलों पर अंकुश न लगाया जाता तो यह प्रवृत्ति प्रदेश की सुरक्षा और सामाजिक ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा बन सकती थी। ऑपरेशन कालनेमि ने इस खतरे को समय रहते पहचान लिया है और उस पर प्रभावी कार्रवाई की है। हालांकि, समीक्षात्मक दृष्टि से देखें तो यह अभियान तभी स्थायी परिणाम देगा, जब इसे निरंतरता और दीर्घकालिक रणनीति से जोड़ा जाएगा। केवल गिरफ्तारियां और सत्यापन ही काफी नहीं होंगे। आवश्यक है कि सरकार एक स्थायी निगरानी तंत्र विकसित करे, जिसमें सीमावर्ती इलाकों से लेकर धार्मिक स्थलों तक हर स्तर पर प्रभावी पहचान सत्यापन की व्यवस्था हो। इसके साथ ही स्थानीय जनता को भी जागरूक किया जाए कि वे साधु-संत के वेश में आए अजनबियों की बिना सोचे-समझे पूजा न करें, बल्कि उनकी पहचान और पृष्ठभूमि को परखें। फिर भी, यह कहना गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री धामी ने ऑपरेशन कालनेमि के जरिए न केवल असामाजिक तत्वों पर शिकंजा कसा है, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक और सांस्कृतिक संदेश भी दिया है। यह संदेश है कि उत्तराखंड अपनी सनातन संस्कृति, अपनी आध्यात्मिक पवित्रता और अपनी पहचान के साथ कोई समझौता नहीं करेगा। आज जब देवभूमि उत्तराखंड देश-दुनिया से लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों का स्वागत कर रही है, ऐसे समय में यह आश्वस्त करने वाला कदम है कि यहाँ की धरती केवल धर्म और आस्था का केंद्र बनी रहेगी, न कि छल और ठगी का अîóा। आने वाले समय में यह अभियान प्रदेश की सांस्कृतिक सुरक्षा और प्रशासनिक सख्ती का ऐसा उदाहरण बन सकता है, जिसे अन्य राज्य भी अपनाने की कोशिश करेंगे।