उत्तराखण्ड सत्य,रूद्रपुर
जिला पंचायत चुनाव में खानपुर पूर्व सीट ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल की जमीनी पकड़ और जनसंपर्क आज भी उतना ही प्रभावशाली है जितना उनके विधायकी के दौर में हुआ करता था। उन्होंने इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी सुषमा हाल्दार को जिताकर न केवल अपनी रणनीतिक कुशलता का परिचय दिया, बल्कि उन आलोचकों को भी करारा जवाब दिया जो उनके राजनीतिक करियर को ढलती छाया मानने लगे थे। भाजपा के पूर्व विधायक रहे ठुकराल 2022 में टिकट कटने के बाद बगावती तेवर अपनाकर निर्दलीय के रूप में चुनावी रण में उतरे थे, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद राजनीति के गलियारों में कभी उनकी भाजपा में श्घर वापसीश् की चर्चा होती रही, तो कभी कांग्रेस में जाने के कयास लगाए जाते रहे। नगर निकाय चुनावों में मेयर पद के लिए स्वयं या अपने भाई को मैदान में उतारने की तैयारी भी ठुकराल ने की थी, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आग्रह पर उन्होंने कदम पीछे खींच लिए। यह घटनाक्रम भी यही संकेत देता रहा कि ठुकराल अभी भी सियासी समीकरणों के केंद्र में हैं। हालांकि उन्होंने चुनाव हारने के बाद भी न तो राजनीतिक सक्रियता छोड़ी और न ही जनता से जुड़ाव। पिछले तीन वर्षों में ठुकराल ने लगातार क्षेत्र में जनसंपर्क बनाए रखा। जनसरोकारों में उनकी उपस्थिति और लगातार संवाद ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी नजर 2027 के विधानसभा चुनाव पर टिकी है, और वे अब पूरी रणनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इसका ताजा प्रमाण इस बार के जिला पंचायत चुनाव में देखने को मिला, जहां ठुकराल ने रुद्रपुर विधानसभा क्षेत्र की खानपुर पूर्व सीट को अपने मान-सम्मान की लड़ाई बना लिया। उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों से इतर एक निर्दलीय प्रत्याशी सुषमा हाल्दार के पक्ष में पूरी ताकत झोंक दी। दिन-रात की मेहनत, गांव-गांव का दौरा, मतदाताओं से सीधा संवाद और बार-बार यह समझाना कि क्षेत्रहित में एक स्वच्छ और प्रभावी नेतृत्व की आवश्यकता ह इन सब प्रयासों का असर साफ दिखा। चुनाव परिणाम में सुषमा हाल्दार ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। उन्होंने 12,525 मत हासिल कर भाजपा समर्थित प्रत्याशी अमिता विश्वास को 7,296 मतों के भारी अंतर से पराजित कर दिया। अमिता को महज 5,229 मत मिल सके, जबकि अन्य प्रत्याशी रविता विश्वास को 1,405, विशुका साना को 1,219, पूजा सागर को 642 और कल्पना को केवल 257 मत ही मिले। सुषमा की इस बड़ी जीत के बाद यह साफ हो गया है कि ठुकराल को राजनीतिक रूप से खारिज कर देने वाले अब अपने आकलन पर दोबारा विचार कर रहे हैं। यह नतीजा ठुकराल की व्यक्तिगत साख और संगठनात्मक ताकत का जीवंत प्रमाण है। ग्रामीण मतदाताओं के बीच आज भी उनका प्रभाव बरकरार है। यह बात इस चुनाव ने तरह साबित कर दी है।