बर्फीले दरबार तक पहुंचने में शिवभक्तों की आस्था की हर पल होती है परीक्षा
अजय चड्डा, रूद्रपुर
हर वर्ष जुलाई के महीनों में जब देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों श्रद्धालु उत्तर की ओर बढ़ते हैं, तो उनकी मंजिल होती है- बाबा बर्फानी का पावन दरबार। जम्मू-कश्मीर की ऊंची पहाड़ियों में बर्फ से ढकी पवित्र अमरनाथ गुफा तक की यात्रा जितनी रोमांचक है, उतनी ही कठिन भी। लेकिन जिस तरह भक्तजन आत्मिक श्रद्धा, संकल्प और साहस के साथ इस यात्रा को पूर्ण करते हैं, वह श्रद्धा को सजीव बना देता है। इस बार श्री अमरनाथ सेवा मण्डल, रुद्रपुर के तत्वावधान में यात्रा की सिल्वर जुबली 98 तीर्थयात्रियों की यात्रा के साथ सम्पन्न हुई। यात्रा की शुरूआत 6 जुलाई को रूद्रपुर स्थित पांच मंदिर से हुई। उत्साह के साथ बाबा के जयकारे लगाते हुए सभी तीर्थ यात्री पूजा अर्चना के बाद दिल्ली के लिए रवाना हुए। जहाँ केंद्रीय व वरिष्ठ नेताओं ने श्रद्धालुओं का स्वागत किया। वहाँ से 7 जुलाई को हवाई मार्ग से श्रीनगर पहुंचे। उसके बाद टैक्सियों के माध्यम से जत्था बालटाल पहुंचा, जहां ओम शिव शक्ति सेवा मण्डल, चीका द्वारा लगाए गए भव्य भंडारे में रात्रि विश्राम हुआ। सेवा शिविर में कार्यकर्ताओं की आत्मीयता, सेवा भाव और समर्पण ऐसा था, जो हर यात्री के हृदय को छू गया। हर यात्री को वहाँ भोजन, चाय, फलाहार, विश्राम स्थल और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं। 8 जुलाई की शाम को जत्था बाबा बर्फानी के दर्शनों के लिए रवाना हुआ। गुफा तक की यात्रा बेहद चुनौतीपूर्ण थी। पत्थरों से भरे और बर्फीले मार्ग, तीखी चढ़ाई, ऑक्सीजन की कमी सब कुछ होने के बावजूद हर श्रद्धालु के चेहरे पर भक्ति का तेज साफ नजर आता था। अमरनाथ गुफा तक पहुँचकर श्रद्धालुओं ने शिवलिंग के दर्शन किए, जो प्राकृतिक रूप से बर्फ से निर्मित होता है और जिसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है। वहाँ पहुँचते ही जो आत्मिक शांति और अद्भुत ऊर्जा का अनुभव होता है, वह शब्दों से परे है। यह ऐसा स्थान है, जहाँ पहुँचकर हर भक्त स्वयं को शिवमय अनुभव करता है। 8 जुलाई को दर्शन के बाद 9 जुलाई को जत्था पुनः श्रीनगर लौटा और वहाँ दो दिनों तक पर्यटन स्थलों का भ्रमण किया। 12 जुलाई को श्रीनगर से जम्मू होते हुए सभी यात्री माँ वैष्णो देवी के दर्शन हेतु कटरा पहुँचे। 13 जुलाई की रात को गरीब रथ ट्रेन से रवाना होकर 14 जुलाई को दोपहर में जत्था सकुशल रुद्रपुर लौटा। अमरनाथ की यात्रा दो मार्गों से होती है-पहलगाम और बालटाल। पहल गाम मार्ग सुंदर और सुरक्षात्मक माना जाता है, जबकि बालटाल मार्ग जोिखम से भरा है पर तेज गति से दर्शन कर लौटने का विकल्प देता है। पहलगाम से यात्रा शुरू होती है, जो एक सुंदर हिल स्टेशन है। चंदनवारी, पिस्सू घाटी, शेषनाग और पंचतरणी प्रमुख पड़ाव हैं। शेषनाग की झील को लेकर मान्यता है कि यहाँ शेषनाग वास करते हैं और 24 घंटे में एक बार दर्शन देते हैं। पंचतरणी में पाँच नदियाँ बहती हैं। यहाँ अत्यधिक ठंड और ऑक्सीजन की कमी रहती है, इसलिए यात्रियों को विशेष तैयारी के साथ चलना होता है। महागुनास दर्रा और वेबवेल टॉप जैसे दुर्गम बिंदु भी इसी मार्ग में आते हैं। गुफा से दर्शन के बाद यात्री वापस पंचतरणी या शेषनाग में विश्राम करते हैं और पुनः पहलगाम लौटते हैं। अमरनाथ गुफा के बारे में कई कथायें प्रचलित है। कहा जाता है कि अमरनाथ यात्रा अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूवार्ध में एक मुसलमान गड़रिए को चला था। आज भी चौथाई चढ़ावा मुसलमान गड़रिए के वंशजों को मिलता है। अमरनाथ गुफा दक्षिण कश्मीर के हिमालयवर्ती क्षेत्र में है। यह श्रीनगर से लगभग 141 किमी- की दूरी पर 3,888 मीटर (12,756 फुट) की उंचाई पर स्थित है। अमरनाथ धाम का इतिहास ऐसा माना जाता है कि मध्यकाल के बाद लोगों ने इस गुफा को भुला दिया था। 15वीं शताब्दी में एक बार फिर एक गडरिये, बुट्टðा मलिक ने इसका पता लगाया। कहा जाता है कि एक महात्मा ने बुट्टðा मलिक को कोयले से भरा हुआ एक थैला दिया। घर पहुंचने पर जब उसने उस थैले को सोने से सिक्कों से भरा हुआ पाया, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। खुशी के मारे वह महात्मा का धन्यवाद करना चाहता था, लेकिन वह महात्मा उसे कहीं नहीं मिला। इसकी बजाय उसने पवित्र गुफा देखी और उसमें उसे शिवलिंग के दर्शन हुए। उसने ग्रामवासियों को इसके बारे में जानकारी दी। तब से यह तीर्थ यात्रा का पवित्र स्थल बन गया। जनश्रुति प्रचलित है कि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुत्तिफ़ प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अर्द्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई। कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं। कुल मिलाकर अमरनाथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मा को भीतर से आलोकित करने वाला अनुभव है। जो एक बार बाबा बर्फानी के दरबार पहुँच जाता है, वह बार-बार वहाँ लौटने की कामना करता है। कठिनाइयों से भरे मार्ग, लेकिन साथ में सेवा, श्रद्धा, संगठन और सुरक्षा व्यवस्था यह सब मिलकर अमरनाथ यात्रा को भारत की सबसे विशिष्ट तीर्थ यात्राओं में से एक बनाते हैं।
भक्ति और सेवा का अपूर्व संगमः चीका वालों का भण्डारा
रूद्रपुर। ओम शिव शक्ति सेवा मण्डल, चीका द्वारा बालटाल में हर वर्ष विशाल भंडारा और सेवा कैंप लगाया जाता है। इस बार भी भंडारे में 56 प्रकार के व्यंजन, चाय-नाश्ता, फलाहार, शुगर फ्री भोजन, व्रत भोजन, चिकित्सा सेवा और रात्रि विश्राम की व्यवस्था की गई। यह भंडारा तीर्थयात्रियों के लिए जीवनदायिनी सेवा का केंद्र रहा। सेवा मण्डल के कार्यकर्ता पूरे सेवाभाव से तीर्थ यात्रियों की सेवा में दिन रात जुटे रहते हैं। भण्डारे का भोजन किसी फाईव स्टार होटल से कम नहीं होता। इसके अलावा यात्रियों के लिए रात्रि विश्राम व्यवस्था के साथ ही चिकित्सा व अन्य सुविधायें भी मुहैया कराई जाती हैं। सेवा मण्डल पिछले करीब दो दशक से बाल टाल में सेवा कैम्पप और भण्डारे का आयोजन कर रहा है। इस बार भी लंगर का नजारा अद्भुत था, लंगर में तीर्थ यत्रियों की भारी भीड़ थी। वहां पर तरह-तरह के पकवान सजे हुए थे, और वहॉं के सेवादार बड़े प्यार और आदरभाव से सभी को भोजन करा रहे थे, वहॉं समयानुसार चाय, नास्ते एवं खाने का प्रबंध रहता है। देश के लगभग सभी शाकाहारी व्यंजन यहॉं पर अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को परोसे जाते हैं। व्रत के लिए फलाहार एवं मधुमेह के रोगियों के लिए भी शुगर फ्री खाने का प्रबंध भी यहां पर होता है। यहाँ भोजन की गुणवत्ता और सेवा का भाव किसी पाँच सितारा होटल से कम नहीं था। सेवादारों की आत्मीयता और श्रद्धा देखकर हर यात्री भावविभोर हो उठा।
श्रद्धालु बोले शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता अनुभव
यात्रा से लौटे भक्तों ने अपने दिव्य और आलौकिक अनुभव साझा किये। यात्रियों का कहना था कि यात्रा उतनी आसान नहीं, जितनी लगती है। हर कदम पर खतरा और अनहोनी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। लगातार बढ़ती आतंकी वारदातें भी लोगों को दहलाने को काफी हैं। लेकिन भोले की भत्तिफ़, भंडारे वालों की सेवा और भारतीय सेना की मुश्तैदी से पैदा होने वाली सुरक्षा की भावना, उनके सारे डर अपने आप खत्म कर देती है और वह भक्तिभाव से बिना किसी डर और हिचक के यात्रा पूरी करते हैं। पहली बार तीर्थ यात्रा करने वाले कई यात्रियों ने बताया कि रोमांचक अनुभव उनके जेहन में बस गए हैं। यात्रा से लौटे महापौर विकास शर्मा ने बताया कि पवित्र शिवलिंग के दर्शन करने के बाद का अनुभव अलौकिक होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कठिन यात्रा के बाद जब बाबा बर्फानी के दर्शन होते हैं, तो सुखद अनुभव की अनुभूति होती है और आंखों से खुद ही अश्रुधारा बहने लगती है। यह क्यों होता है, नहीं पता, लेकिन पूर्णता का अहसास होता है। वहां का पल-पल बदलने वाला प्राकृतिक सौंदर्य आकर्षित करता है। पिछले कई वर्षों से यात्रा पर जा रहे यात्रा के संयोजक सुनील ठुकराल ने बताया कि बाबा बर्फानी के दर्शन करके मन खिल उठता है। ऐसी सुखद अनुभूति होती है कि उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। सुनील ठुकराल ने कहा कि यह देश की एकमात्र ऐसी यात्रा है, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में लंगर और भंडारे लगते हैं। यह सेवा का भाव ही है, कि भंडारा आयोजन समितियां साल भर भंडारे के लिए दानदाताओं से सामान और संसाधन एकत्र कर निस्वार्थ भाव से पूरी यात्रा के दौरान वहां रुककर यात्रियों की सेवा करती हैं। सिर्फ खाने की ही नहीं, आपके स्वास्थ्य, जरूरतों और आपात स्थिति में आपको सहारा देने की व्यवस्था भी करती हैं। समाजसेवी राजन राठौर ने बताया कि हर बार की तरह इस बार भी यात्रा का अनुभव दिव्य और आलौकिक था। उन्होंने बताया कि यात्रा के दौरान यात्रियों के लिए पुख्ता इंतजाम किये गये थे। कुछ वर्ष पहले तक कश्मीर काफी पिछड़ा दिखाई देता था। लेकिन अब हाइवे से लेकर पहलगांव और बालटाल तक में विकास दिखाई देता है। पहले जम्मू यात्री निवास से पहलगांव बेस कैंप पहुंचने में जहां सुबह से शाम हो जाती थी, वहीं अब हाइवे और कई टनल बनने से यात्रा सुगम हुयी है और कई घंटे का सफर कम हो गया है। यात्रा से लौटे मनीष चुघ ने बताया कि अमरनाथ यात्रा में भक्ति के साथ सेवा भाव का भी अनूठा संगम देखने को मिलता है। यहां पर भत्तफ़ दयालुता और सेवा के कार्य करते हैं, तीर्थयात्रियों की सहायता करते हैं,भोजन वितरित करते हैं, चिकित्सा सहायता प्रदान करते हैं और मार्ग पर स्वच्छता बनाए रखते हैं। सेवा के ये कार्य करुणा की भावना को मूर्त रूप देते हैं और तीर्थयात्रा की समग्र पवित्रता में योगदान करते हैं। यह यात्रा एक परिवर्तनकारी अनुभव है जो तीर्थयात्रियों की आस्था, धीरज और भत्तिफ़ की परीक्षा लेता है। यह चमत्कारों से भरी तीर्थयात्रा है, जहाँ भत्तफ़ प्रकृति में दिव्यता को देखते हैं और अकथनीय चीजों का सामना करते हैं। यह आध्यात्मिकता से जुड़ने, साझा विश्वास में सांत्वना पाने और भत्तिफ़ की गहन भावना का अनुभव करने का अवसर है। यात्रा से लौटे समाजसेवी महापौर विकास शर्मा ने बताया कि अमरनाथ यात्रा दिव्यता का अनुभव कराती है। वो अनुभव शानदार होता है। यात्रा में प्रकृति को एकदम पास से देखने का मौका मिलता है। आस्था और प्रकृति दोनों ही अलग अनुभव देते हैं। जो शब्दों में बयां नहीं किए जा सकते। जो जाएगा,वो ही इस अनुभव को पाएगा। समाजसेवी राजीव मिड्डा ने कहा कि यात्रा के अनुभव को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। हरबार की तरह इस बार भी सभी की यात्रा सुखद एवं यादगार रही।